बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया गुरु पूर्णिमा का महापर्व। मानस तीर्थ सोनकुंड में श्री श्री 108 श्री पूज्य स्वामी शिवानंद महाराज जी श्री सिद्ध बाबा अद्वैत परमहंस आश्रम बेलगहना के सानिध्य में मनाया गया गुरु पूर्णिमा पर्व । मानस तीर्थ सोनकुंड आश्रम में वर्षो से चली आ रही, गुरु शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, पूज्य स्वामी जी प्रातःकाल 7.00 बजे मानस तीर्थ सोनकुंड आश्रम के प्रस्थान किये,जिसमें उनके अनुयायी 200 से भी अधिक कारों मे उनके साथ सोनकुंड आश्रम गये।पूज्य स्वामी जी द्वारा ध्वज पूजा, समाधि पूजा, एवं व्यास पूजा किया गया। तत्पश्चात दीक्षा का कार्यक्रम किया गया। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।गुरु कोई शरीर नहीं, एक तत्व है जो पूरे ब्रह्मांड में विद्यमान है। मेरा गुरु या तेरा गुरु शरीर के स्तर पर अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन गुरु तत्त्व तो एक ही है। गुरु और शिष्य का संबंध शरीर से परे आत्मिक होता है। गुरु पूर्णिमा गुरु से दीक्षा लेने, साधना को मजबूत करने और अपने भीतर गुरु को अनुभव करने का दिन है। गुरु का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। गुरु हमें आज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते है । भावी जीवन का निर्माण गुरु द्वारा ही होता है। श्री सिद्ध बाबा आश्रम बेलगहना से सम्बंधित भारत के विभिन्न राज्यों मे आश्रम है, जिसका पूज्य स्वामी सहज एवं सरल ही संचालित कर रहे है। मानस तीर्थ सोनकुंड में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी पूरे भारत भूमि से श्रद्धवान भक्तों का ताँता लगा हुआ देखने को मिला जिसमे यूपी,बिहार, मध्यप्रदेश, जम्मू, खासकर छत्तीसगढ़ से से हजारों की संख्या में दर्शन करने पहुंचे थे। सोनकुंड में गुरु पूर्णिमा मानने के बाद दोपहर 3.00 बजे पुनः बेलगहना वापस होकर बेलगहना आश्रम में भी समाधि पूजा व सिद्ध बाबा जी की पूजन किया गया। इस पूजा मे भक्तों की अपार संख्या मे आकर गुरु दर्शन एवं गुरु पूजन कर अपनी जीवन को धन्य किये। गुरु पूर्णिमा से आस पास के अंचल में गुरु भक्तों के मन में गुरु के प्रति प्रगाड़ आस्था और विश्वास प्रबल हो जाती है। इस शुभ अवसर पर संगीत का भी कार्यक्रम रखा गया जिसमें बहुत दूर दूर से संगीत प्रेमी अपनी भजन से संगीत श्रवण करने वाले भक्तों को आनंदित किए। इस अवसर पर भंडारे का आयोजन किया गया जिसमे सभी श्रद्धालु भक्तों ने भंडारे में जाकर प्रसाद ग्रहण किए,पूज्य स्वामी जी अपने उद्धबोधन में कहा की, गुरु बिनु भावनिधि तरही ना कोई,जो बिरंची शंकर सम होही इस कथन की व्याख्या करते हुए बताया की गुरु के बिना कोई भी भावसागर पार नहीं हो सकता, चाहे वो ब्रम्हा जी शंकर जी के समान ही क्यो ना हो ,सदगुरु का अर्थ शिक्षक या आचार्य नहीं है । शिक्षक अथवा आचार्य हमें थोड़ा-बहुत ऐहिक ज्ञान देते हैं लेकिन सदगुरु तो हमें निजस्वरूप का ज्ञान दे देते हैं । जिस ज्ञान की प्राप्ति के बाद मोह उत्पन्न न हो, दुःख का प्रभाव न पड़े और परब्रह्म की प्राप्ति हो जाए ऐसा ज्ञान गुरुकृपा से ही मिलता है। इस अवसर पर कार्यक्रम में सेवा समिति ,प्रबंध समिति एवं पुलिस प्रशासन, विद्युत विभाग,का सहयोग सराहनीय रहा।
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