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प्राइवेट स्कूल के बच्चे और उनके पीठ पर लदी भारी बस्तों की बोझ से उनकी रीढ़ की हड्डी पर पड़ता बुरा असर : बाल संरक्षण और शिक्षा के अधिकार को चिढ़ाती व्यवस्था

प्राइवेट स्कूल के बच्चे और उनके पीठ पर लदी भारी बस्तों की बोझ से उनकी रीढ़ की हड्डी पर पड़ता बुरा असर : बाल संरक्षण और शिक्षा के अधिकार को चिढ़ाती व्यवस्था

क्या कमीशन के चक्कर मे हर साल बदलते हैं ये पुस्तक ?पालकों पर मंहगाई की दोहरी मार : पुस्तक और यूनिफार्म क्यों मिलते हैं विशेष दुकान पर,पाठ्य सामग्री व यूनिफार्म खुले बाजार में मिले ताकि कमीशन खेल से निजात पा सके आम पालक

बेलगाम प्राइवेट स्कूलों की कौन करेगा मॉनिटरिंग? शिक्षा विभाग के अधिकारी ये सब देखकर भी मौन!!

आप किसी बच्चे को स्कूल समय मे झुकी कमर लेकर चलते देखे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं क्योंकि ये बच्चे प्राइवेट स्कूलों के होते हैं जिनकी पीठ पर पुस्तकों और कापियों से लदी भारी बस्ता लटका हुआ होता है जिनका वजन 4 से 8 किलो तक का हो सकता है। बच्चों को सभी पुस्तक कॉपी लाने की बाध्यता देकर ये प्राइवेट स्कूल क्या देश की भावी पीढ़ी कूबड़ और झुकी कमर देना चाहते हैं ये चिंतन का विषय है। बाल संरक्षण और शिक्षा के अधिकार की खुलेआम धज्जियां इन प्राइवेट स्कूलों में उड़ाई जा रही है और जिम्मेदार विभाग मूकदर्शक बना हुआ है।

बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखकर इन प्राइवेट स्कूल संचालको को भारी बस्तों का बोझ कम करना चाहिए, रोज रोज सभी पुस्तक और कॉपियों को मंगवाने के बजाय ऐसी व्यवस्था देनी चाहिए कि पढाई में भी कोई व्यवधान न हो और बच्चों को भी भारी बस्तों के बोझ से मुक्ति मिल जाये,वो उतनी ही सामग्री बस्ते में ले जाएं जिनको वो आसानी से पीठ पर लाद सके और उन्हें कोई तकलीफ न हो।


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